रावण का जन्म: ब्रह्मज्ञान और राक्षसी प्रवृत्ति का संगम


रावण का नाम सुनते ही मन में एक खलनायक की छवि उभरती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वह किस कुल में जन्मा था और उसके अंदर इतनी विद्वता कहाँ से आई


भारतीय पौराणिक ग्रंथों में रावण को एक ऐसा पात्र माना गया है, जो अपनी विद्वता, शक्ति और अभिमान के लिए जाना जाता है। 

रामायण के मुख्य खलनायक के रूप में प्रसिद्ध रावण का जन्म स्वयं में एक गूढ़ और रोचक कथा है। 

रावण केवल राक्षस नहीं था, बल्कि वह एक महान पंडित, शिवभक्त और वेदों का ज्ञाता भी था। 

आइए जानते हैं कि रावण का जन्म कैसे हुआ।


रावण के माता-पिता कौन थे?

रावण का जन्म महर्षि विश्रवा और राक्षसी कैकसी के पुत्र के रूप में हुआ था।

महर्षि विश्रवा: वे ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य ऋषि के बेटे थे, और एक तेजस्वी ब्राह्मण थे।

कैकसी: राक्षसों के राजा सुमाली की पुत्री थी। सुमाली चाहता था कि उसकी संतानें फिर से राक्षस कुल की शक्ति को प्राप्त करें, इसलिए उसने अपनी पुत्री कैकसी को महर्षि विश्रवा से विवाह करने के लिए भेजा।

क्यों हुआ था यह विवाह?

सुमाली ने यह योजना बनाई थी कि यदि उसकी बेटी एक तपस्वी और तेजस्वी ऋषि से संतान उत्पन्न करे, तो वे संतानें शक्ति, बुद्धि और राक्षसी बल का अद्भुत संगम होंगी। इसीलिए कैकसी महर्षि विश्रवा के पास गईं और उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा जताई।

विश्रवा ने पहले तो मना किया, लेकिन कैकसी की तपस्या, सेवा और समर्पण को देखकर उन्होंने यह वरदान दिया कि वह संतान प्राप्त करेगी, लेकिन चूँकि वह रात्रि के समय आई थी, इसलिए उसकी संतानें राक्षसी प्रवृत्ति की होंगी।


रावण का जन्म __________

कैकसी को चार संतानें हुईं:

1. रावण – सबसे बड़ा पुत्र, अत्यंत बलशाली और विद्वान

2. कुंभकर्ण – अद्भुत बलशाली, लेकिन अत्यधिक भोजन और नींद का स्वभाव।

3. विभीषण – सात्विक प्रवृत्ति के, विष्णु भक्त और धर्मनिष्ठ।

4. शूर्पणखा – एक राक्षसी कन्या थी।


रावण का असली नाम दशग्रीव था, क्योंकि वह दस सिरों वाला था। 

ऐसा माना जाता है कि उसके दस सिर ज्ञान के दसों दिशाओं में उसके प्रभुत्व का प्रतीक थे।


रावण का तप और वरदान

बचपन से ही रावण ने कठोर तपस्या की। 

उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक सिर काट-काटकर अर्पित किए। 

हर बार ब्रह्मा उसे एक नया सिर दे देते। 

अंत में जब दसवां सिर काटा गया, तब ब्रह्मा प्रकट हुए और वरदान दिया कि वह अमरता के समीप होगा और देवताओं, असुरों, गंधर्वों से उसे कोई नहीं मार सकेगा। 

लेकिन रावण ने यह नहीं सोचा कि एक मानव भी उसका अंत कर सकता है।






♈जय श्री राम ♈ 



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